Wednesday, June 20, 2012

वोह चेहरे पे बिखरी थी जुल्फे


वोह चेहरे पे बिखरी थी जुल्फे
वोह जुल्फे हटाता मयूरपंख
वोह मलमल के जैसा तेरा स्पर्श
वोह सहमी सी सिमटी सी अनबन

वोह  मेहेकती बेहेक्ति हवाएं
वोह ठहरा सा पागल हुआ पल
वोह धीमि सी गीली सी साँसे
वोह आंसू से पलकें थी बोझल

वोह लफ़्ज़ों की मासुम चुप्पी
वोह होटों की हाय थरथराहट
वोह कह के हुई अनकही जो
अनसुनी बन गयी मेरी चाहत

0 Write your comment: